नन्द बबा घर छोरो भयो, बृषभानु घरै इक छोरी भई.
साँवरो रंग लला कौ दिपै, अरु गौरा के रंग की गोरी भई..
गोकुल मैं नव चन्द्र उग्यौ, बरसाने में एक चकोरी भई..
प्रेम कौ पन्थ चलाइबै कों, श्री राधिका-कृष्ण की जोरी भई..
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प्रेम के मीठे दो बोल कहौ, बढ़ कें सत्कार करौ नें करौ.
दधि-गागर कों कम भार करो, दूजौ उपकार करौ नें करौ..
ये जन्म में प्रीति प्रगाढ़ रखौ, ओ जन्म में प्यार करौ नें करौ.
अबै पार कराओ हमें जमुना, भव सागर पार करौ नें करौ..
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घनश्याम कौ रूप कहा कहिये, कुल अंगना काम कला सौ गिरै.
बरसै जो झमाझम सावन सौ, कभि क्वांर के एक झला सो गिरै..
लरजै-गरजै चमकै-दमकै, चितचोर चपल चपला सो गिरै.
घुँघरू सौ गसै, करधन सौ कसै, मणिमाल सौ टूटे छला सौ गिरै..
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ग्वालों में एक गुपाल रह्यो, रहि ग्वालिन में इक नोंनी सी राधा.
मोहन के मन भाये दोउ, एक माखन और सलोनी सी राधा..
खेत सरीखो हरी को हियो, रही प्रेम के बीज की बौनी सी राधा.
कृष्ण रहे मृग की तृष्णा, रही जीवन भर मृग-छौनी सी राधा..
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कृष्ण कौ प्रेम पतंग समान, पतंग की डोर सी राधा रही.
कृष्ण रहे जमुना जल से. हर ओर हिलोर सी राधा रही..
कृष्ण रहे बंशी के समान, तो बाँस के पोर सी राधा रही.
कृष्ण को प्रेम असीम भयो, तौ असीम के छोर सी राधा रही..
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श्याम शिला के समान रहे, अरु प्रेम-प्रपात सी राधा रही.
स्याम जू स्याही समान रहे, भरि पूरी दवात सी राधा रही..
छाया से स्याम रहे दिन में, खिली चाँदनी रात सी राधा रही.
बेर के काँटों सी यादें रहीं, तऊ केर की पात सी राधा रही..
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नजरों पै चढ़ीं ज्यों नटखट की, खटकी खटकी फिरतीं ललिता.
कछु जादूगरी श्यामल लट की, लटकी लटकी फिरतीं ललिता..
भई कुंजन मैं झूमा-झटकी, झटकी झटकी फिरतीं ललिता.
सिर पै धर कें दधि की मटकी, मटकी मटकी फिरतीं ललिता..