❤श्री बालकृष्ण लाल❤

 
❤श्री बालकृष्ण लाल❤
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मुख-छबि कहा कहौं बनाइ । निरखि निसि-पति बदन-सोभा, गयौ गगन दुराइ ॥ अमृत अलि मनु पिवन आए, आइ रहे लुभाइ । निकसि सर तैं मीन मानौ,, लरत कीर छुराइ ॥ कनक-कुंडल स्रवन बिभ्रम कुमुद निसि सकुचाइ। सूर हरि की निरखि सोभा कोटि काम लजाइ ॥ भावार्थ :-- इस मुख की शोभा का क्या बनाकर (उपमा देकर) वर्णन करूँ । इसकी छटा को देखकर चन्द्रमा (लज्जा से) आकाश में छिप गया है । (अलकें ऐसी लगती हैं मानो) भौरों का झुंड अमृत पीने आया था और आकर लुब्ध हो रहा है । (नेत्रों के मध्य में नासिका ऐसी है मानो) सरोवर से निकलकर दो मछलियाँ लड़ रही थीं, एक तोता उन्हें अलग करने बीच में आ बैठा है । कानों में सोने के कुण्डलों की शोभा को देखकर रात्रि में फूलने वाले कुमुद के पुष्प भी संकुचित होते हैं । सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर की शोभा देखकर करोड़ों कामदेव लज्जित हो रहे हैं ।
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❤जय कन्हैया लाल की❤
❤श्री बालकृष्ण लाल❤
*Happy Janmashyami..
❤Happy Janmashtami❤
❤जय कन्हैया लाल की❤Happy Janmashtami